Story on friends by Ratnesh'PDR'

 Friends....

ऐ दोस्त....

Friends

ये भी जिंदगी के कितने  हसीन दिनों में सुमार थे । आज लाकडाउन लगे लगभग चार महीने हो गया। ऐसा लग रहा है जैसे बिछड़ गए हों सब। वही वाली बात हो गई  गुजर गए न जाने कितने दिन बिना उन दोस्तों के जिनके साथ कभी जमाने हुआ करतें थे।
हम लोग साथ में रहते थे और हमेशा कहीं आना जाना होता तो साथ में ही आते थे हम लोगों की एक अच्छी आदत थी कि हम लोग हमेशा ट्रेन के डिब्बे में जनरल डिब्बा ही यूज़ करते तो बस इसीलिए हम लोगों को कभी बैठने के लिए सीट नहीं मिलती थी कभी मिल भी जाती थी तो परोपकार परमो धर्मा का नियम अपना लेते थे और अपनी सीट दूसरों को दे देते थे ये उन दिनों की बात है जब हम पांच छह लोग साथ में जा रहे थे एक  दोस्त के घर मैरिज अटेंड करनी यह उन दिनों की तस्वीर है। ट्रेन में हुआ यह था की ट्रेन में बहुत ज्यादा भीड़ थी और बस खाली खड़े होने की जगह थी हम लोग भी उसी में घुस गए बैठने की जगह तो मिली नहीं और सफर तो तय करना ही था हम लोग 10-12 लोग थे। हम लोग ट्रेन में बैठने गए कितना हसीन लम्हा था वो ट्रेन का 7-8 दोस्त साथ में थे बैठने के लिए सीट किसी के पास नहीं थी सभी लोग खड़े होकर जा रहे थे एकदम पैसेंजर से भरी ट्रेन काफी खुशनुमा सफर था। दोस्त के घर वाले स्टेशन पर पहुंच कर सब लोग साथ में ही ट्रेन से उतर गए। साथ दोस्त के घर तक अनजाने सफर को मस्ती सा तय करके पहुंच गए। वहां से फिर रात २ बजे अपने होस्टल के लिए रवाना हो गए। काफ़ी रोमांचक सफर के बाद हम सब होस्टल पहुंच गये। कितना खूबसूरत सफर था ७-८ दोस्त २०० किलोमीटर का सफर रात का समय कसम से मज़ा आ गया। ये यात्रा जीवन भर याद रहेगी मुझे।
हालांकि यह यात्रा इस तरह की मेरी पहली यात्रा नहीं ‌थी। हम लोग साथ में पहले भी कई खूबसूरत और रोमांचक सफर साथ में तय कर चुके थे। वो कुंभ स्नान की यात्रा का मैं वर्णन ही नहीं कर सकता क्योंकि इस यात्रा में हर पल‌ खूबसूरत रहा और हर कदम कुछ नया था।
इतना खूबसूरत और इतना लंबा इतना रोमांचक सफर मेरे जीवन का पहला सफर था जिसमें सब कुछ अलग था सबकुछ सोच से परे था।
वो लाखों की भीड़ में चलना और गंगा में डुबकी लगाने की बात ही अलग थी। वापस लौटना समय जिंदगी का सबसे बड़ा  अनुभव दे गया।
हम १२-१४  दोस्त साथ में थे। ट्रेन में इतनी भीड़ थी कि कौन कहां बैठेंगा कुछ भी पता नहीं था क्योंकि ट्रेन में बहुत ज्यादा भीड़ थी। हम सब लोग अलग अलग बैठ गये। फिर किसी तरह ट्रेन का सफर तय कर हम लोग लखनऊ स्टेशन पर इकट्ठा हुए। फिर वहां से दूसरी ट्रेन पकड़ कर होस्टल पहुंच गए किसी तरह ।
होस्टल पहुंचते पहुंचते रात को लगभग 1 बज गए थे। फिर होस्टल का गेट खुलवाने के लिए काफी मस्कत करनी पड़ी और अंत में हमें होस्टल में जाने की अनुमति मिल गई।
वास्तव में यह सफर बहुत खुशनुमा था। हर कदम कुछ नया अनुभव मिला कुछ नया सीखने को मिला।

                           ..... pdratnesh ✍️
             ratneshyadav74081@gmail.com
                      Pdrindia.blogspot.com

4 Comments

  1. Replies
    1. Thanku my dear friend
      I published a story on our friendship next week
      You just wait few days
      Thanku
      Thanku so much

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  2. Replies
    1. Thanku dear!!
      I don't know you !
      But thanks for your support and support...

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