उत्तर प्रदेश का 5000 साल पुराना महाभारत कालीन पारिजात वृक्ष दर्शन मात्र से होती है सभी मनोकामनाएं पूरी , अगर उत्तर प्रदेश में रहते हैं तो जरूर जाये यहाँ पर ...

 एकदम सुबह का समय था और आंखें बहुत जल्दी खुल गई थी आज। हां और ना कि उलझने दिमाग में चल रही थी। और फाइनली हमने निर्णय किया कि बस हमको जाना है आज। अकेले 45 किलोमीटर का सफर तन्हा रास्ते। दिमाग में बस एक ही बात चल रही थीं। कैसा होगा वह दृश्य?? जिसके लिए हमने 45 किलोमीटर का सफर अकेले तय किया है!!

45 किलोमीटर का सफर अकेले इसलिए तय करना पड़ा क्योंकि दिवाली का समय था । और सभी दोस्त घर गए थे मैं अकेला मिनी हॉस्टल में रह रहा था । और दिमाग में अचानक से ख्याल आया कि यहां पर रहते हैं, तो यहां से कुछ तो यादें अपने साथ ले चलें और फिर आया दिमाग में चलो चलते हैं आज "पारिजात" का वृक्ष देखने।
जहां तक मैंने सुना है पारिजात का वृक्ष लगभग 5000 साल पुराना है। पारिजात वृक्ष का दर्शन करने वाले व्यक्ति की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। पारिजात का वृक्ष महाभारत काल का वृक्ष है ऐसा वहां के लोग और मंदिर के पुजारी बताते हैं।
पारिजात वृक्ष के मंदिर पर एक पुजारी से बात करते हुए हमें पता चला कि पारिजात का वृक्ष 6 महीने बिना पत्तियों के और 6 महीने पत्तियों से हरा भरा रहता है। पारिजात वृक्ष के बारे में इन्हीं सारी चीजों को जानने की उत्सुकता और दर्शन करने की लालसा से शुरू होती है हमारी यात्रा।
हमने अपनी यात्रा की शुरुआत बैंक से कुछ पैसे निकालकर की ताकि यात्रा में कोई असुविधा ना हो। अपनी यात्रा के दौरान हमने नई नई जगहों को देखा और नई नई चीजों को देखा और वाहनों की रफ्तार का भी अनुभव किया हमारी यात्रा मे हमारा पूरा साथ दिया गूगल मैप्स ने। गूगल मैप्स के बिना हमारी यात्रा काफी मुश्किल होती लेकिन गूगल मैप्स ने हमारी यात्रा को काफी आसान बना दिया गूगल मैप्स ने हर मोड़ पर मुझे दिशा निर्देश दिए। मैं नए नए रास्तों से होकर पारिजात वृक्ष की तरफ बढ़ रहा था और ऐसा लग रहा था कि रास्ते काफी लंबे होते जा रहे हैं लेकिन वह घड़ी आई जब इंतजार खत्म हुआ और दर्शन हुए पारिजात वृक्ष के। पारिजात वृक्ष के दर्शन करके मैं काफी हर्षोल्लासित हुआ। पारिजात वृक्ष की छत्रछाया में मुझे बड़े ही आनंद की अनुभूति हुई। मैं वहां पर लगभग एक से डेढ़ घंटे तक रुका कुछ फोटोस भी क्लिक किए। यह मेरी जिंदगी का एकदम नया अनुभव था। और फिर पारिजात वृक्ष के दर्शन करके। मंदिर के पुजारी से पूछा बाबाजी कोटवा धाम कितनी दूर होगा। उन्होंने बताया कि लगभग 3.5 किलोमीटर होगा यहां से। फिर मैंने सोचा चलो कोटवा धाम का भी दर्शन कर लेते हैं क्योंकि कोटवा धाम भी एक प्रसिद्ध मंदिर है।
फिर हमारी यात्रा शुरू होती है कोटवा धाम के लिए साथ में ही पारिजात वृक्ष के मंदिर पर फोटोग्राफी करने वाले एक लड़के से मेरी मुलाकात हुई जो कोटवा धाम मे भी फोटोग्राफी करता है। तो वह कोटवा धाम भी जा रहा था फिर उसके साथ शुरू हुई मेरी कोटवा धाम की यात्रा। कोटवा धाम पहुंचकर मैंने मंदिर में जाकर जगजीवन दास साहब के आसन के दर्शन किए और खुद को गौरवान्वित महसूस किया और आनंदित भी। और यहां पर लगे मेले से मैंने एक लॉकेट खरीदा और उसे गले में पहन लिया। कोटवा धाम मंदिर परिसर में मैंने कुछ फोटोस भी यादों के लिए क्लिक किए।
पारिजात वृक्ष और कोटवा धाम मंदिर के दर्शन करने के पश्चात फिर मेरी यात्रा शुरू हुई वापस लौटने की। मुझे वापस लौटते हुए शाम हो गई । सड़कों पर ट्रैफिक काफी बढ़ गया था क्योंकि सभी लोग अपने-अपने घर वापस लौटकर जा रहे थे और मार्केट में भी भीड काफी ज्यादा बढ़ गई थी। आखिरकार रात होते-होते मैं अपने रूम पर सही सलामत पहुंच गया।
यह यात्रा वाकई में मेरे जीवन की एक यादगार और साहसिक यात्रा रही। क्योंकि यह यात्रा मैंने अकेले ही पूरी की नए-नए रास्ते, नए-नए लोग, नई नई जगहें,  इन सारी चीजों से मैं अकेले ही रूबरू हुआ। आप भी जाइए इस तरह की नई यात्रा पर अकेले और खास अनुभव के लिए। आपको भी काफी आनंद महसूस होगा

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—PDRatnesh 

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